हनुमान जी को प्रकट करने का मंत्र (कहानी सहित)

हनुमान जी को भगवान भोलेनाथ का 11 अवतार और भगवान राम का परम भक्त माना जाता है. हिंदू धर्म में ऐसी भी मान्यताएं हैं की हनुमान जी को चिरंजीवी होने का भी वरदान है.

आजकल के समय में देवी देवताओं का हमारे समक्ष प्रकट होना बहुत मुश्किल हो चुका है. पहले का समय था जब लोग वन में जाकर भगवान से वरदान पाने के लिए पूरी श्रद्धा से तपस्या किया करते थे.

उनकी श्रद्धा और तप से प्रसन्न होकर भगवान अपना रूप उनको दिखाते थे और मनचाहा वरदान भी उनको दे दिया करते थे.

आज के इस भागा दौड़ी वाले जीवन में किसी भी व्यक्ति के पास इतना समय नहीं रहता कि वे वन में जाकर तपस्या कर सकें.

भगवान राम ने हनुमान को यह आदेश दिया था कि तुम सदैव इस धरती पर रहो और सभी राम भक्तों को कष्टों से छुटकारा दिलाओ.

ऐसा माना जाता है कि हनुमान आज के समय में भी भक्तों की सहायता के लिए मानव समाज में आते हैं.

हनुमान जी को प्रकट करने का मंत्र
हनुमान जी को प्रकट करने का मंत्र

हमारे शास्त्रों में भी ऐसा लिखा है कि भगवान हर जगह हैं. पर क्या ऐसा कोई मंत्र नहीं है जिससे हम हनुमान को अपने सामने साक्षात प्रकट कर सकें. उनके दर्शन कर सकें.

धर्म ज्ञानियों का ऐसा मानना है कि एक ऐसा मंत्र है जिससे हम हनुमान जी को अपने समक्ष महसूस कर सकते हैं. हमें उस क्षण ऐसा अनुभव होता है जैसे भगवान हमारे सामने ही खड़े हो.

जो मंत्र ज्ञानियों के द्वारा दिया गया है वह मंत्र मैं आपको इस आर्टिकल में बताऊंगा. और साथ ही साथ उस मंत्र को पढ़ने की विधि भी बताऊंगा कि कैसे आप उस मंत्र का उच्चारण करके भगवान हनुमान को अपने समक्ष महसूस कर सकते हैं और प्रकट कर सकते हैं.

हनुमान जी को प्रकट करने का मंत्र

वह मंत्र जो आपको भगवान हनुमान के आस पास होने का एहसास दिला सकता है कुछ इस प्रकार है :

कालतंतु कारेचरन्ति एनर मरिष्णु , निर्मुक्तेर कालेत्वम अमरिष्णु।।

इस मंत्र के जाप से आप को भगवान की अनुभूति हो सकती है. बस आपको मंत्र जाप विधि का पूरा ध्यान रखना होगा. भगवान को प्रकट करने के लिए धर्म ज्ञानियों ने दो शर्तें रखी थी. उन शर्तों को जो पूरा कर पाएगा वही भगवान को महसूस कर पाएगा.

  1. पहली शर्त: भक्तों को आत्मा से हनुमान जी के साथ संबंध का बोध होना चाहिए. उनके हृदय में भगवान हनुमान के प्रति असीम श्रद्धा और प्रेम होना चाहिए.
  2. दूसरी शर्त: इस मंत्र की दूसरी शर्त थोड़ी कठिन है. जिस जगह पर इस मंत्र का जाप किया जा रहा है उस जगह से 1 किलोमीटर तक की दूरी पर कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होना चाहिए जिसके हृदय में हनुमान की असीम श्रद्धा और प्रेम ना हो.

कई लोगों को इस मंत्र के पीछे की कहानी ज्ञात नहीं है. तो आइए जानते हैं कि इस मंत्र के पीछे की कहानी क्या है.

इस महामंत्र के पीछे की कहानी

यह मंत्र स्वयं हनुमान जी ने पिदुर पर्वत पर रहने वाले आदिवासियों को दिया था. पिदुर श्रीलंका का सबसे ऊंचा पर्वत है. जहां उस समय कुछ आदिवासी रहा करते थे.

जब भगवान राम ने मानव जीवन त्याग कर समाधि ले ली थी तब हनुमान जी अयोध्या छोड़ कर फिर से जंगलों में रहने लगे थे. एक जंगल से दूसरे जंगल का भ्रमण करते रहते थे और भगवान राम के परम भक्तों के सभी कष्टों से दूर करते थे.

एक बार वे भ्रमण करते हुए श्रीलंका के पिदुर पर्वत पर पहुंचे. जहां कुछ आदिवासी भक्तों ने उनकी सच्चे दिल से सेवा की. और उनकी सेवा से हनुमान जी बहुत प्रसन्न हुए.

हनुमान जी जब पिदूर के वन से जाने लगे तब उन्होंने पिदुर के आदिवासियों को यह मंत्र दिया और कहा जब कभी भी आप लोगों को मेरे दर्शन की अभिलाषा हो तो इस मंत्र का जप करें. आपके इस मंत्र का जप करने से मैं आपके सामने प्रकट हो जाऊंगा.

हनुमान जी के ऐसा कहने पर एक आदिवासी ने कहा हे प्रभु हम आपके इस मंत्र को गुप्त रखेंगे. फिर भी अगर किसी दूसरे को यह मंत्र पता चल गया और उसने इस मंत्र का दुरुपयोग किया फिर तो अनर्थ हो जाएगा.

हनुमान जी ने कहा इस मंत्र का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता. कोई भी व्यक्ति जब तक सच्ची भावना से मुझे याद नहीं करेगा या मंत्र जपने वाले की आत्मा का मुझसे संबंध का बोध नही होगा तब तक यह मंत्र काम नहीं करेगा.

हनुमान जी के ऐसा कहने पर एक आदिवासी ने कहा हे प्रभु आपने हमें तो आत्मा से आपको स्मरण करने का बोध बता दिया. पर हमारे आने वाली पीढ़ी को आत्मा से आप तक जुड़ने का बोध कौन समझायेगा. वे आपसे जुड़ने की अनुभूति कैसे कर पाएंगे. और उनके लिए तो यह मंत्र भी काम नहीं करेगा.

हनुमान जी ने कहा मैं वचन देता हूं की मैं हर 41 वर्ष बाद तुम्हारे कुटुंब में आऊंगा और तुम्हारे आने वाली पीढ़ियों को मुझसे जुड़ने का आत्मज्ञान अवश्य दूंगा.

धर्म ज्ञानियों का ऐसा मानना है कि हनुमानजी पिदुर के पर्वत पर हर 41 साल बाद जाते हैं और आदिवासियों की पीढ़ियों को अपना दर्शन देते हैं. पिदुर पर्वत के आदिवासी आधुनिक समाज से बिलकुल अलग रहते हैं.

हनुमान जी को चिरंजीवी होने का वरदान कैसे मिला

एक बार की बात है हनुमान जी को बहुत भूख लगी थी. उस समय वे बालक ही थे. उन्होंने अपनी मां अंजना से कहा तो वे उनके लिए फल लेने चली गई.

सूर्य उदय का समय था. इधर हनुमान जी ने देखा कि आकाश में एक गोलाकार बहुत बड़ा फल लगा हुआ है तो वे उसे खाने के लिए जाने लगे. उसी समय सूर्य ग्रहण भी था.

राहु सूर्य को ग्रहण करने ही वाला था कि हनुमान ने सूर्य को फल समझ कर अपने मुख मैं रख लिया. राहु हनुमान जी का बड़ा शरीर और सूर्य को ग्रहण करते देख बहुत हैरान हुआ.

उसने देवराज इंद्र से जाकर शिकायत लगाई कि एक बच्चा सूर्य को ग्रहण करके मेरा अधिकार छीनना चाहता है. और शायद वह मुझे भी ग्रहण कर सकता है.

देवराज इंद्र ने हनुमान के ऊपर अपना वज्र फेंक दिया. वह वज्र जाकर हनुमान की ठुड्डी ( जिसे हनु कहते हैं ) में जाकर लगा और हनुमान की ठुड्डी टूट गई. और वो बहुत जोर से पृथ्वी पर गिर कर बेहोश हो गए.

इधर पवन जी बहुत परेशान थे कि आखिर हनुमान कहां गए. जब उनको इन सब बातों का पता लगा तो उन्हें देवराज इंद्र पर बहुत गुस्सा आया और उन्होंने अपने बहाव को रोक दिया. अब पूरी दुनिया संकट में आ गई.

ब्रह्मा जी चिंतित हो गए क्योंकि कोई भी इंसान बिना वायु के जीवित नहीं रह सकता था. इस प्रकार तो सारी धरती नष्ट हो जाती. इसलिए ब्रह्मा जी ने हनुमान को ठीक कर दिया और उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान दिया. तभी से उनका नाम हनुमान पड़ा था.

इस कहानी से हमें ये बात पता चलती है कि हनुमान जी आज भी जीवित हैं और वह भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. अगर हम सच्चे मन से उनकी श्रद्धा और पूजा करें तो हमारे जीवन में किसी भी प्रकार की समस्याएं नहीं आ सकती.

दोस्तों हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको कैसी लगी हमें कमेंट करके बताना ना भूलें. अगर आपके मन में किसी भी प्रकार के सवाल हों तो आप उन्हें भी कमेंट करके हमें बता सकते हैं.