कुंडली में शनि की स्थिति (शुभ या अशुभ)

दोस्तों हम सभी के जीवन में शनि एक बहुत महत्वपूर्ण ग्रह हैं क्योंकि यह हमारे कर्म को निर्धारित करते हैं। इनको दुख का कारक भी कहा जाता है। अगर कोई व्यक्ति अच्छे से कर्म ना कर पाए और दुखी रहे तो फिर उसका जीवन बहुत ही कष्टकारी हो जाता है।

दोस्तों शनि न्यायप्रिय भी होते हैं इसलिए अगर किसी व्यक्ति के कर्म सही नहीं है तो शनिदेव उसे कष्ट देते हैं और वही अगर कोई व्यक्ति अपने कर्म कुछ सही ढंग से कर रहा है पर सही रास्ते पर चल रहा है तो शनि उसे जीवन के सभी सुखों को प्रदान करते हैं।

आज मैं आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताने वाला हूं कि आप कैसे जाने कि आपकी कुंडली में शनि की स्थिति क्या है। क्या वह आपके लिए शुभ परिणाम दे रहे हैं?

कुंडली में शनि की स्थिति (शुभ या अशुभ)

शनि हमारे जीवन में सुख, दुख, ऐश्वर्य, भोग, कर्म, त्याग और भी अन्य चीजें निर्धारित करते हैं। कुंडली के सभी बारह भागों में इनके विभिन्न परिणाम प्राप्त होते हैं।

दोस्तों कुंडली में शनि ग्रह की स्थिति को दो प्रकार से बांटा जा सकता है। मैं आपको शनि की कुछ ऐसी परिस्थितियां बताऊंगा जिससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आपकी कुंडली में शनि शुभ है या अशुभ।

कुंडली में शनि की शुभ स्थिति

1. शनि केंद्र और त्रिकोण का स्वामी

अगर आपकी कुंडली में शनि केंद्र या त्रिकोण के स्वामी हैं तो निश्चित तौर पर वह आपके जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रह बन जाते हैं क्योंकि वह आपके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को निर्धारित करते हैं जैसे आपका शरीर, आपका भाग्य, आपकी विद्या, आपकी पत्नी और आपके कर्म।

दोस्तों अगर कोई भी पापक ग्रह केंद्र का स्वामी हो तो उसकी अशुभता में कमी आती है वहीं अगर कोई शुभ ग्रह केंद्र का स्वामी हो तो उसकी शुभता में कमी आती है इसलिए शनि जब केंद्र के स्वामी होंगे तो निश्चित तौर पर उनकी  अशुभता में कमी आएगी।

ज्योतिष शास्त्र में लग्न को केंद्र और त्रिकोण दोनों माना गया है जिस कारण से अगर शनि लग्न के स्वामी होते हैं तो वह आपके लिए अत्यंत शुभ स्थिति बन जाती है और अगर शनि केंद्र यानी पांचवें और नौवें भाव के स्वामी हो तो भी उनकी स्थिति शुभ ही कही जाएगी।

दोस्तों यह हो गई उनके आधिपत्य की बात। अब अगर शनि केंद्र और त्रिकोण के स्वामी हो लेकिन वह बुरे भावों में बैठे हो तथा दूसरे पाप ग्रह मंगल, सूर्य, राहु और केतु से दृष्ट हो तो यह उनके परिणामों में कमी ला सकता है।

2. शनि बुरे भावों का स्वामी होकर विपरीत राजयोग बनाए

दोस्तों पर मैंने आपको बहुत ही सरल नियम बताया लेकिन अब मैं आपको बताऊंगा कि अगर आपकी कुंडली में शनि बुरे भावों का भी स्वामी है तो वह कैसे आपके लिए शुभ परिणाम दे सकता है।

ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि अगर बुरे भावों के स्वामी बुरे भावों मे ही बैठ जाएं तो यह एक विपरीत राजयोग निर्माण करता है।

अगर आपकी कुंडली में शनि बुरे भाव जैसे तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव का स्वामी होकर इन्हीं बुरे भावों में बैठा हो तथा उन पर पापक ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो यह आपके लिए विपरीत राजयोग निर्माण करता है। 

कुंडली में शनि की अशुभ स्थिति

1. शनि का बुरे भावों का स्वामी होना

अगर आपकी कुंडली में शनि तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव का स्वामी है तो उसे आपके जीवन को संघर्षपूर्ण बनाने का काम दिया गया है इसलिए ऐसी परिस्थिति में शनि बुरे परिणाम ही देते हैं।

अगर मान लीजिए आपकी कन्या लग्न की कुंडली है जिसमें शनि की मूल त्रिकोण राशि छठे भाव में आती है। अब ऐसी परिस्थिति में अगर शनि दशम भाव में बैठ जाएं तो यह व्यक्ति के कर्म में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं। अगर मान लीजिए यह व्यक्ति के भाग्य स्थान में बैठे हैं तो व्यक्ति का संबंध उसके पिता से खराब रह सकता है।

क्यों जरूरी है शनि का मजबूत होना

दोस्तों कुंडली में अगर शनि ग्रह मजबूत नहीं है तो व्यक्ति को कर्म करने में अनेक प्रकार की समस्याएं आ सकती हैं। ऐसे लोग अत्यधिक आलसी हो जाने के कारण अपने कार्यक्षेत्र पर अच्छे से ध्यान नहीं देते।

अगर शनि मजबूत हो तो व्यक्ति अपने कार्य के प्रति सदैव अग्रसर रहता है तथा जीवन में उन्नति करने के बारे में सोचता है। अगर किसी व्यक्ति का शनि मजबूत है तो वह स्वयं के साथ-साथ समाज हित के बारे में भी सोचता है।