स्त्री की कुंडली में गुरु (बारह भावों में)

जन्म कुंडली में गुरु सर्वाधिक शुभ ग्रह होते हैं। अगर यह आपकी कुंडली में कारक हैं तब तो यह आपके लिए शुभ परिणाम देते ही हैं लेकिन अगर यह मारक भी हो तब भी उतना अशुभ परिणाम नहीं दे पाते जितना अन्य ग्रह आपको दे सकते हैं।

स्त्री की कुंडली में गुरु का महत्व होता है क्योंकि गुरु उनकी कुंडली में उनके ज्ञान के साथ-साथ उनके पति और बच्चों के कारण भी होते हैं। कुंडली में कारक ग्रह का प्रभाव गहरा होता है। 

अगर किसी की कुंडली में सप्तम भाव और सप्तमेश पीड़ित है लेकिन सप्तम का कारक गुरु बली अवस्था में बैठा है तो उस स्त्री का विवाह अवश्य होगा लेकिन वही अगर गुरु भी पीड़ित हो जाते हैं तो फिर विवाह होने में समस्याएं आएंगी।

आज मैं आपको स्त्री की कुंडली में गुरु के फल सभी बारह भावों में बताने वाला हूं इसलिए इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें।

स्त्री की कुंडली में गुरु

स्त्री की कुंडली में प्रथम भाव में गुरु

प्रथम भाव का गुरु स्त्री को रूपवती बना देता है। ऐसी स्त्रियां सत्य बोलने वाली होती हैं साथ ही साथ न्याय प्रिय भी हो जाती हैं। यह भाग्यवान और धनवान भी होती हैं। गुरु संतान कारक ग्रह होते हैं इसलिए अगर वह लग्न में बैठे तो स्त्री को संतान प्राप्ति अवश्य ही होती है।

यह गुरु स्त्री को एक सुंदर तथा धनवान पति प्राप्त कराता है। वह इनका ख्याल रखने वाला होता है। ऐसी स्त्रियां परामर्श देने में, शिक्षण के कार्य में, पत्रकारिता या और भी गुरु से संबंधित कार्य करने में सफलता हासिल करती हैं।

अगर लग्न का गुरु शत्रु या नीच राशि में हो या इस पर अशुभ दृष्टियां पड रही हो तो स्वभाव में कमी आती है और अलग-अलग लग्नों में गुरु की राशियों किन किन भावों पर पड रही हैं उसे देख कर ही फल कहना उचित होता है।

स्त्री की कुंडली में दूसरे भाव में गुरु

जिस स्त्री के दूसरे भाव में गुरु हो उसका जन्म एक प्रसिद्ध कुल में हो सकता है। इन्हें अपने परिवार से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। दूसरा भाव वाणी का भाव होता है। अगर वाणी में गुरु का प्रभाव आ जाए तो वह स्त्री एक गुरु के समान परामर्श देने वाली बन जाती है।

अगर इस भाव में गुरु पीड़ित और अकेले नहीं हैं तो ऐसी स्त्रियों का बचपन बहुत ही सुख में रहता है। यह सभी प्रकार के सुखों को प्राप्त करने वाली होती हैं तथा धनवान होती है। 

यह गुरु इन्हें कर्जे से मुक्ति दिलाता है तथा इनके शत्रु नहीं बनने देता। अगर शत्रु बन भी जाते हैं तो ऐसी स्त्रियां अपनी वाणी के बल पर शत्रुओं को हरा देती हैं। दूसरे भाव का गुरु स्त्री को पुत्रवती और धनवान भी बनाता है। अगर गुरु पीड़ित हो या शत्रु राशि में हो तो प्रभाव में कमी आती है।

स्त्री की कुंडली में तीसरे भाव में गुरु

तीसरे भाव में गुरु स्त्री को धार्मिक बनाता है। अगर यहां पर गुरु बलवान स्थिति में बैठा हुआ है तो वह उनको को सभी प्रकार के सुख दिलाएगा लेकिन अगर पीड़ित हो गया तो फिर उसके कारक तत्वों के साथ-साथ जिन भावों का स्वामी है उसमें भी कमी आ जाएगी।

तीसरे भाव में बैठे गुरु की सातवीं दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जो भाग्य का स्थान है। यह दृष्टि उनको भाग्यवान बनाती है। ऐसी स्त्रियां बातचीत करने में बेहतरीन होती हैं। 

ये गुरु अपनी पांचवी दृष्टि से आपके सप्तम स्थान को देखता है जिस कारण ये आपके पति को शिक्षित और बुद्धिमान बना देती है तथा आपके दांपत्य जीवन को बेहतर बनाने में मदद करती है। नवम दृष्टि गुरु की धन भाव में पड़ने के कारण आपको धन लाभ भी करता है।

स्त्री की कुंडली में चौथे भाव में गुरु

चौथे भाव का गुरु स्त्री को सभी प्रकार के सुखों को प्रदान करता है। ये स्त्रियां अपने माता की सहायक और सभी को अति प्रिय होती हैं। इनके भीतर परिवार में शांति बनाए रखने का गुण होता है और ये जीवन का आनंद लेना जानती हैं।

ये धन धान्य से संपन्न होती हैं। यहां पर बैठे गुरु की सप्तम दृष्टि कर्म भाव पर पड़ती है जिसके कारण इनका कर्म बेहतरीन हो जाता है। 

अगर चाहें तो गुरु से संबंधित कार्य करके अपने जीवन को बेहतरीन बना सकती हैं जैसे शिक्षण, परामर्श का कार्य या पत्रकारिता। ये कभी किसी के साथ गलत करने का प्रयत्न नहीं करती हैं।

स्त्री की कुंडली में पांचवें भाव में गुरु

पंचम भाव का गुरु स्त्री को सच की राह पर चलने वाला तथा सत्यवादी बनाता है। इनके पास सभी प्रकार के गुण होते हैं। ऐसी स्त्रियां पढ़ाई लिखाई में बहुत अच्छी होती हैं। 

पंचम का गुरु अगर अकेला नहीं है तो संतान देता है और दांपत्य जीवन को भी अच्छा करता है। यह इन्हें धार्मिक और भाग्यवती बनाता है। इन्हें शिक्षण और परामर्श के कार्यों से धन लाभ हो सकता है।

कई बार यह गुरु स्त्रियों को अपने मन के अनुसार चलने वाला बना देता है। उन्हें किसी दूसरे का सुनना पसंद नहीं रहता। अगर कोई अशुभ दृष्टि गुरु पर हो तब तो ऐसे स्त्रियां अपने ज्ञान को लेकर घमंडी हो जाती हैं।

अगर यहां पर गुरु अकेले और पीड़ित नहीं है तो प्रभाव में पूर्णता देखने को मिलेगी लेकिन अगर पीड़ित हैं या अशुभ दृष्टि पड़ रही हैं तो फिर शुभ प्रभावों में कमी आ सकती है।

स्त्री की कुंडली में छठवें भाव में गुरु

छठे भाव का गुरु स्त्री को भावुक बना देता है। ऐसी स्त्रियां अपने कर्म और नौकरी को लेकर बहुत ही ज्यादा सजग हो जाती हैं। कई बार इनके जीवन का उद्देश्य दृढ़ता से नौकरी करना होता है।

अगर यह नौकरी में नहीं भी है तो भी इन्हें जो भी काम दिया जाता है उसे बड़ी ही शिद्दत से पूर्ण करती हैं। इनका मानना होता है कि इन्हें हर व्यक्ति का सच्चे मन से आदर करना चाहिए। कई बार यह बड़ी सरलता से दूसरों की बातों में भी आ जाती हैं।

छठी का गुरु स्त्री को आलसी बना देता है। इनके शत्रु कम होते हैं। अगर यहां पर बृहस्पति किसी शुभ ग्रह के साथ है तो रोग में कमी होती है लेकिन अगर शनि की राशि में है और राहु केतु संयुक्त है तो रोग होने की संभावनएं अधिक बढ़ जाती हैं।

स्त्री की कुंडली में सप्तम भाव में गुरु

सप्तम भाव का गुरु स्त्री को यानी और रूपवती बनाता है। ऐसी स्त्रियों को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है तथा भाग्य भी पूर्णरूपेण इनका साथ देता है। अगर यह व्यापार करती हैं तो उसमें भी इन्हें ख्याति प्राप्त होती है।

ऐसी स्त्रियों के पति पूजा-पाठ और धर्म में रुचि रखने वाले होते हैं। इन्हें यात्राएं करना पसंद होता है। इनको प्रचुर मात्रा में धन लाभ होता है तथा यह मेहनती भी होती है।

इसके प्रभाव से इनके पास पर्याप्त मात्रा में ज्ञान उपलब्ध होता है और यह परामर्श के कार्य या शिक्षक बंद कर अपना जीवन यापन कर सकती हैं। 

अगर सप्तम का गुरु पीड़ित हो तो प्रभाव में कमी आ सकती है तथा दांपत्य जीवन में भी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है या विवाह और संतान प्राप्ति में भी देरी हो सकती है क्योंकि स्त्री की कुंडली में गुरु उनके पति और संतान का कारक होता है और अगर गुरु पीड़ित हो जाए तो पति और संतान प्राप्ति में बाधाएं आ सकती हैं।

स्त्री की कुंडली में अष्टम भाव में गुरु

स्त्री की कुंडली में अष्टम का गुरु अच्छा संकेत नहीं देता क्योंकि उनके पति और संतान का कारक का अष्टम भाव में चले जाना यह दर्शाता है कि उनके जीवन में संतान और उनके पति को लेकर कष्ट बने रह सकते हैं।

यह स्थिति स्त्री के शारीरिक भी कमजोर कर सकती है या फिर उनके शरीर में मांस की मात्रा ज्यादा हो सकती है। गुरु ज्ञान का कारक होते हैं अगर यह आठवें भाव में चले जाएं तो ऐसी स्त्रियां कई बार विवेक हीन निर्णय लेती हैं। अगर इस ग्रुप पर कोई अशुभ दृष्टि हो तो ऐसा होने की संभावनाएं और बढ़ जाती हैं।

स्त्री की कुंडली में नवम भाव में गुरु

नवम भाव का गुरु स्त्री को घूमने-फिरने का शौकीन बना देता है। ऐसी स्त्रियां धार्मिक स्थलों पर जाने की इच्छुक रहती हैं। यह भाग्यवती और रूपवती भी होती हैं।

इनके भीतर बातचीत करने का कला कौशल होता है तथा इनकी बुद्धि भी तीव्र होती है। इनके संबंध इनके पिता जी से काफी अच्छे होते हैं तथा इन्हें पिता से लाभ भी होता है। ये नई नई चीजों को सीखने की इच्छुक होती हैं।

नवम भाव का गुरु अगर नीच या पीड़ित हो तो स्त्री के संबंध पिता से अच्छे नहीं रहते और उनके निर्णय कई बार गलत साबित हो जाते हैं लेकिन अगर गुरु सही परिणाम दे रहे हैं तो ऐसी स्त्रियों को निर्णय लेने में महारत हासिल होती है। यह गुरु स्त्री को सहकर्मी तथा ईश्वर मैं श्रद्धा रखने वाला बना देता है।

स्त्री की कुंडली में दशम भाव में गुरु

दशम भाव का गुरु स्त्री को सही कार्य करने वाला बनाता है अर्थात वह सदैव सही कर्म करने की इच्छुक होती हैं। इन्हें सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। यह स्त्रियां अपने परिवार से प्रेम रखने वाली तथा सत्यवादी होती हैं।

ये कार्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त करती हैं तथा राज्य के अधिकारियों से भी ने सम्मान और लाभ प्राप्त होता है। सामान्य तौर पर इन के शत्रु बहुत कम होते हैं लेकिन अगर बन भी गए तो उन्हें इनके सामने घुटने टेकने ही पढ़ते हैं।

दशम भाव का गुरु स्त्री को कई बार अत्यधिक भावुक बना देता है जो इनके कर्म क्षेत्र के लिए एक बड़ी समस्या हो सकती है। अगर कोई झूठी भावनाओं के साथ भी इनके पास आए और अपनी दुख भरी कहानी सुना दे तो यह अपना सब कुछ दान करने के लिए तैयार हो जाते हैं। इन्हें इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए।

स्त्री की कुंडली में ग्यारहवें भाव में गुरु

ग्यारहवें भाव का गुरु स्त्री को धनवान और संतानवान बनाता है। ये अत्यंत पराक्रमी होती हैं तथा अपनी कड़ी मेहनत से धन और ऐश्वर्य प्राप्त करती हैं। इनका स्वभाव क्षमाशील होता है तथा इन्हें किसी भी प्रकार के रोगों से जल्द छुटकारा प्राप्त होता है।

ऐसी स्त्रियां भाग्यशाली होती हैं तथा इन्हें एक शिक्षित और रूपवान जीवनसाथी प्राप्त होता है। इनकी पढ़ाई लिखाई अच्छे से होती है तथा इनकी बुद्धि भी तीव्र होती है। इनकी रुचि धर्म-कर्म में भी रहती है।

अगर यहां पर गुरु पीड़ित या नीच हो जाए तो प्रभाव में कमी आती है तथा धन लाभ और विवाह में विलंब हो सकता है।

स्त्री की कुंडली में बारहवें भाव में गुरु

बारहवें भाव का गुरु स्त्री को आलसी और क्रोधी बना देता है लेकिन इनकी अपनी माता से संबंध अच्छे रहते हैं तथा इन्हें सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।

अगर गुरु यहां पर पीड़ित हो जाए तो संतान प्राप्ति में समस्या और विवाह में भी बाधा उत्पन्न हो सकती है। ऐसी स्त्रियां शुभ कार्यों में अपने धन को खर्च करती हैं। बारहवें  भाव का गुरु कई बार इनको गलत कामों में भी फंसा सकता है इसलिए सतर्क रहना आवश्यक है।

अगर बारहवें भाव में गुरु नीच या पीड़ित हो जाए तो आपको जेल या अस्पताल के चक्कर काटने पड़ सकते हैं इसलिए इन्हें गलत कर्मों की तरफ नहीं जाना चाहिए।