शनि पर गुरु की दृष्टि का फल | Shani Par Guru Ki Drishti

कई बार लोग अपने जीवन के सभी कष्टों का कारण शनि को बताते हैं। हमारे समाज में शनि की ऐसी प्रकृति बनी हुई है कि शनि अत्यंत दुख देने वाला तथा कष्टकारी होता है।

दोस्तों ऐसा कहना गलत नहीं होगा क्योंकि शनि कष्ट और दुख का कारण तो होता है लेकिन हमें अभी ध्यान रखना चाहिए की शनि हर व्यक्ति को कष्ट और दुख ही नहीं देता। यह न्यायाधीश है यह हमें हमारे कर्मों का फल देता है। जिन व्यक्तियों के कर्म बुरे रहते हैं उन्हें काफी दुख और कष्ट झेलने पड़ते हैं।

आज मैं आपको बताऊंगा कि अगर आपकी कुंडली में शनि पर गुरु की दृष्टि हो तो उसके क्या परिणाम निकाले जा सकते हैं इसलिए इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें।

शनि पर गुरु की दृष्टि का फल

गुरु जन्म कुंडली में सबसे शुभ ग्रह माने गए हैं और ज्योतिष शास्त्र में गुरु की दृष्टि को अमृत के समान माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि गुरु की जहां भी दृष्टि पड़ती है उस स्थान की वृद्धि होती है।

अगर आपके शनि पर गुरु की दृष्टि पड़ रही है तो उसके परिणाम स्वरूप शनि अच्छा फल देने लगता है। शनि वैराग्य का कारक है। जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि पर गुरु की दृष्टि हो उसकी देवी-देवताओं पर भक्ति भावना बढ़ जाती है तथा वह पूरे विश्वास के साथ पूजा पाठ करता है।

guru and saturn dailywhile

गुरु शनि के ऊपर दृष्टि डालकर शनि की अशुभता को कम करते हैं। अगर आपके जीवन में शनि बुरे परिणाम दे रहे हैं तो गुरु की दृष्टि उन बुरे परिणामों में कमी लाएगी साथ ही साथ अच्छे परिणामों में वृद्धि करेगी।

दोस्तों यह हो गई कारक तत्वों की बात अब बात करते हैं कुंडली के भावों के अनुसार। अगर कुंडली में शनि बुरे भावों का स्वामी है और गुरु अच्छे भावों का तो निश्चित तौर पर गुरु की दृष्टि शनि के ऊपर शुभता लाएगी और शनि के बुरे परिणामों में कमी आएगी।

जैसे मान लीजिए आपका सिंह लग्न हो तो यहां पर शनि छठे और सातवें भाव का स्वामी बनता है। यह दोनों भाव अच्छे नहीं माने जाते इसलिए यहां पर शनि आपको बुरे परिणाम देने वाला बन जाता है।

अब अगर बात करें सिंह लग्न में गुरु की तो गुरु पांचवें के साथ-साथ आठवें भाव के भी स्वामी होते हैं लेकिन उनकी मूल त्रिकोण राशि पांचवें भाव में आती है जिस कारण गुरु शुभ परिणाम देते हैं।

अगर सिंह लग्न में गुरु शनि के ऊपर दृष्टि डालते हैं तो निश्चित तौर पर शनि के बुरे परिणामों में कमी आएगी क्योंकि गुरु शनि को अपनी अमृत भरी दृष्टि से देखकर शुभता प्रदान कर देते हैं।

आप अगर बात करें तुला लग्न की तो यहां पर शनि सर्वथा कारक होते हैं क्योंकि उनका आधिपत्य चौथे और पांचवे भाव का होता है जो कि एक केंद्र और दूसरा त्रिकोण का स्थान है लेकिन तुला लग्न में गुरु तीसरे और छठे भाव के स्वामी होने के कारण अत्यंत अनिष्ट कारी होते हैं।

अगर ऐसी स्थिति में गुरु शनि के ऊपर दृष्टि डालते हैं तो वे शनि को पीड़ित कर देंगे जिससे शनि उतना शुभ परिणाम नहीं दे पाएगा इसलिए आपको ग्रहों की स्थिति देखते समय उनके कारक तत्व तथा उनके आधिपत्य पर भी ध्यान रखना चाहिए।