मिथुन लग्न में शनि का फल (12 भावों में)

ज्योतिष शास्त्र में शनि को पापक ग्रह के रूप में देखा जाता है। अक्सर हम सभी उत्सुक रहते हैं कि हमारी कुंडली में शनि के क्या प्रभाव हो सकते हैं।

मिथुन लग्न में शनि का फल
मिथुन लग्न में शनि का फल

आज मैं आपको मिथुन लग्न की कुंडली में शनि के बारह भावो में क्या फल होंगे उसके बारे में जानकारी देने वाला है इसलिए इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें।

मिथुन लग्न की कुण्डली के प्रथम भाव मे शनि

मिथुन लग्न के प्रथम भाव में शनि बुध की राशि पर स्थित होता है जो की शनि की मित्र है। इसके प्रभाव से जातक के शारीरिक सौन्दर्य में कुछ कमी आती है, परन्तु लग्न में शनि आयु की वृद्धि करता है। ऐसे व्यक्तियों की रुचि प्राचीन वस्तुओं को अध्यन करने की हो सकती है।

लग्न में बैठा शनि तीसरी शत्रुदृष्टि से तृतीयभाव की देखने से भाई-बहिन से मनमुटाव और बैर करवा देता है। जातक के पराक्रम में कमी आती है। 

सातवीं शत्रु दृष्टि से सप्तमभाव को देखने से स्त्री से दूरी या निरंतर मनमुटाव की स्थिति बनी रहती है। व्यवसाय के क्षेत्र में असन्तोष और बाधाएं आ सकती हैं। 

दसवीं शत्रु दृष्टि से दशमभाव की देखने से पिता से वैर रहता है तथा कार्य क्षेत्र में कठिनाइयाँ आती हैं।

मिथुन लग्न की कुण्डली के द्वितीय भाव मे शनि 

मिथुन लग्न के द्वितीय भाव में चंद्रमा की राशि आती है जो शनि की शत्रु राशि है। इस भाव में शनि के स्थित होने से जातक धन संचय नहीं कर पाता और उसे पूर्ण तरीके से अपने कुटुंब का सुख नहीं मिलता। जातक की वाणी भी कड़वी हो सकती है। 

द्वितीय भाव में बैठा शनि तीसरी मित्र-दृष्टि से चतुर्थभाव को देखता है जिससे माता, भूमि तथा भवन का सुख कुछ कष्टों के साथ प्राप्त होता है। व्यक्ति को मानसिक सुख के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है।

शनि की सातवीं दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है जोकि स्वयं शनि की ही राशि है। शनि कि यह दृष्टि आय में वृद्धि कराती है और जातक की पुरातत्विक चीजों में रुचि बढ़ सकती है।

दसवीं नीचदृष्टि से एकादशभाव की देखने से यह शनि आप के मार्ग में कठिनाइयाँ ला सकता है लेकिन आप अपने समाज में भाग्यवान समझे जाएंगे। आप सज्जन हैं और आपके भीतर अपना स्वार्थ भी छिपा होता है। 

मिथुन लग्न की कुण्डली के तृतीय भाव मे शनि

मिथुन लग्न की कुंडली में तृतीय भाव में सिंह राशि होती है जोकि शनि की शत्रु राशि है। अगर शनि सिंह राशि पर बैठता है तो जातक के पराक्रम में कुछ कमी आ जाती है। ऐसा व्यक्ति की उसके भाई बहनों से दूरियां बढ़ जाती हैं।

तीसरे भाव में बैठकर शनी तीसरी उच्चदृष्टि से पंचमभाव को देखता है। शनि की यह दृष्टि लाभदायक होती है। व्यक्ति की विद्या बुद्धि और संतान में वृद्धि होती है।

शनि की सातवीं दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जोकि शनि की मूलत्रिकोण राशि है। यहां पर शनि की दृष्टि पड़ने से कठिनाइयों का सामना करने के बाद भाग्योदय होता है। ऐसे व्यक्ति धर्म के प्रति जिम्मेदार भी होते हैं। 

तीसरे भाव का शनि दसवीं दृष्टि से द्वादशभाव को देखता है। इस दृष्टि के कारण आपको के कारण बाहरी स्थानों के सम्बन्ध से लाभ होता है, परन्तु खर्च अधिक बना रहता है।

मिथुन लग्न की कुण्डली के चौथे भाव मे शनि

मिथुन लग्न में शनि चौथे भाव में मित्र बुध की राशि पर होने से व्यक्ति को माता का सुख थोड़ी कमी के साथ प्राप्त होता है। चौथा भाव हमारे भूमि, भवन और वाहन का भी होता है। इस भाव में शनि के बैठने से हमारे भूमि, भवन वाहन के सुख में कुछ कमी आ जाती है। आयु को श्रेष्ठ लाभ होता है। ऐसा व्यक्ति धर्म का पालन करने वाला भी होता है।

शनि की तीसरी शत्रु दृष्टि षष्टम भाव पर पड़ती है जो आपके शत्रु को कमजोर कर देती है और आपको शत्रुओं तथा लड़ाई झगड़ों से लाभ होता है।

शनी की सातवीं शत्रु दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जिससे व्यक्ति को सदैव ही पिता और राज्य क्षेत्र से असंतोष रहता है। ऐसी स्थिति पिता के साथ मनमुटाव भी करा सकती है।

शनि की दसवीं मित्रदृष्टि प्रथमभाव पर आती है। मित्र दृष्टि होने के कारण व्यक्ति के पास शारीरिक बल भरपूर मात्रा में होता है। ऐसे व्यक्ति भाग्यशाली भी होते हैं।

मिथुन लग्न की कुण्डली के पंचम भाव मे शनि

मिथुन लग्न के पांचवें भाव में शनि, शुक्र की राशि पर होता है। दोनों एक दूसरे के परस्पर मित्र होते हैं। ऐसे जातक को जीवन में विद्या बुद्धि के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। ऐसे लोग काफी भाग्यवान होते हैं।

शनि की तीसरी शत्रु दृष्टि सप्तमभाव पर पड़ती है जिसके कारण स्त्री से मतभेद और दूरियां रहने की संभावनाएं बढ़ जाती है। व्यवसाय में भी काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

शनि की सातवी शत्रु दृष्टि एकादश भाव पर पड़ती जिससे नहीं जाना व्यक्ति को आर्थिक संकटों से गुजरना पड़ सकता है और बड़े भाई से मतभेद भी हो सकते हैं।

शनी दसवीं शत्रु दृष्टि से द्वितीय भाव को देखता है जिस कारण जातक को धन संचय करने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। व्यक्ति को अपने कुटुंब का भरपूर मात्रा में सुख नहीं मिल पाता।

मिथुन लग्न की कुण्डली के छठे भाव मे शनि 

मिथुन लग्न की कुंडली के छठे भाव में शनि के होने से व्यक्ति शत्रुओं पर विजयी रहता है और लड़ाई झगड़ों मे भी व्यक्ति को सफलता मिलती है।

शनि की तीसरी दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है जोकि स्वयं शनि का ही घर है। इस दृष्टि से जातक की आयु में वृद्धि होती है और पुरातत्व की चीजों से भी लाभ हो सकता है।

शनि की सातवीं मित्र दृष्टि बारहवें भाव पर पड़ती है जिससे आपको विदेश से लाभ हो सकता है या आपकी उन्नति आपके निवास स्थान से दूर हो सकती है। ऐसे लोग अपना प्रभुत्व और ठाठ-बाठ बनाने में बहुत खर्च कर देते हैं।

शनि की दसवीं शत्रु दृष्टि तीसरे भाव पर पड़ती है जिससे व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार परिश्रम नहीं कर पाता उसके पराक्रम में कमी आ जाती है। शनि की यह शत्रु दृष्टि भाई बहन से मतभेद भी करा देती है।

मिथुन लग्न की कुण्डली के सप्तम भाव मे शनि

मिथुन लग्न की कुंडली के सप्तम भाव में शनि होने से जातक को स्त्री का संपूर्ण सुख नहीं मिल पाता। ऐसे व्यक्तियों को व्यवसाय में लाभ और हानि दोनों समय-समय पर दस्तक देते रहते हैं।

मिथुन लग्न सप्तम भाव शनि सातवे भाव में मानु गुरु की राशि पर स्थित शनि के प्रभाव से जातक को स्त्री नया व्यवसाय के क्षेत्र में सुख-दुःख तथा हानि-लाभ दोनों की प्राप्ति होती रहती है। 

शनि की तीसरी दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जो कि स्वयं शनि की ही राशि है। सनी की अपने ही भाव पर दृष्टि व्यक्ति को भाग्यवान बना देती है। ऐसे व्यक्ति भाग्य के बलबूते पर अपने जीवन में बड़े-बड़े कार्य कर लेते हैं।

शनि की सातवीं मित्र दृष्टि लग्न पर पड़ती है जिससे व्यक्ति के शरीर की वृद्धि कुछ विलंब से होती है लेकिन देर से ही सही व्यक्ति का अच्छा और हष्ट पुष्ट शरीर हो जाता है।

शनि की तस्वीर मित्र दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ती है जिससे व्यक्ति को माता का सुख कम प्राप्त होता है और भवन वाहन भी विलंब से मिलता है। ऐसे व्यक्ति जीवन में स्वयं के परिश्रम से कठिनाइयों पर विजय पाते हैं।

मिथुन लग्न की कुण्डली के अष्टम भाव मे शनि

मिथुन लग्न के अष्टम भाव में शनि स्वराशि का हो जाता है। यहां पर शनि जातक की आयु में वृद्धि करता है। ऐसे व्यक्तियों की रुचि प्राचीन चीजों की खोजबीन करने में रहती है। यहां पर बैठा शनि जातक के भाग्य और सम्मान में कठिनाई ला सकता है।

शनि की तीसरी शत्रु दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जिससे व्यक्ति के संबंध पिता से बहुत ठीक नहीं रह पाते और उसे कार्य क्षेत्र में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

यहां पर बैठा शनि सातवीं दृष्टि से द्वितीय भाव को देखता है जिससे व्यक्ति को धन संचय करने में समस्याएं आती है और परिवार का सुख भी कम मिल पाता है।

शनि की दसवीं उच्च दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती है जो व्यक्ति को संतान प्राप्ति में विलंब को दर्शाता है। ऐसे व्यक्ति पढ़ने लिखने में बहुत होशियार होते हैं क्योंकि उनकी बुद्धि तीव्र होती है।

मिथुन लग्न की कुण्डली के नवम भाव मे शनि

मिथुन लग्न की कुंडली के नवम भाव में शनि अपनी मूल त्रिकोण राशि में स्थित होता है। ऐसे जातक भाग्यवान तो होते हैं लेकिन उनकी भाग्य उन्नति 33 वर्ष के बाद होती है। यह लोग अपने धर्म के प्रति ईमानदार होते हैं। इन्हें बड़ी-बड़ी यात्राएं करने का शौक होता है और इनकी यात्राएं सफल भी होती हैं।

नवम भाव में स्थित शनि नीच दृष्टि से ग्यारहवें भाव को देखता है जिससे व्यक्ति को धन लाभ कठिनाइयों का सामना करने के बाद हो पाता है।

शनि की सातवीं दृष्टि तीसरे भाव पर पड़ती है जिससे जातक को भाई-बहन का सुख कम ही मिल पाता है। ऐसे व्यक्ति किसी भी कार्य में अपना संपूर्ण बल उपयोग नहीं कर पाते। इनके पराक्रम में कमी आती है।

शनि की दसवीं शत्रु दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है जिससे शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और ऋण से छुटकारा मिलता है।

मिथुन लग्न की कुण्डली के दशम भाव मे शनि 

मिथुन लग्न की कुंडली के दशम भाव में शनि शत्रु राशि में स्थित होने के कारण व्यक्ति को पिता के सुख से वंचित कर देता है। ऐसे व्यक्ति जीवन में काफी उन्नति करते हैं, बड़े-बड़े पदाधिकारी बनते हैं।

दशम भाव में स्थित शनि की तीसरी मित्र दृष्टि बारहवें भाव पर पड़ती है जिससे व्यक्ति को विदेश से लाभ हो सकता है। ऐसे व्यक्ति अगर अपने जन्म स्थान से दूर जाकर कार्य करें तो उन्हें अत्यंत फायदेमंद होगा।

सातवीं मित्र दृष्टि से शनि चतुर्थ भाव को देखता है जिससे व्यक्ति को भूमि, भवन और वाहन का संपूर्ण मात्रा में सुख प्राप्त होता है। ऐसे जातक अपने माता से जुड़े हुए रहते हैं और उनको अपनी माता का संपूर्ण सुख प्राप्त होता है।

शनि की दसवीं दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जिससे जातक के विवाह में विलंब हो सकता है और स्त्री के सुख में कमी होती है। व्यवसाय के मामले में भी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

मिथुन लग्न की कुण्डली के ग्यारहवें भाव मे शनि

मिथुन लग्न के एकादश भाव में स्थित नीच का शनि व्यक्ति के आमदनी के लिए बहुत अच्छा नहीं होता। ऐसे जातक धन प्राप्ति के लिए अनुचित मार्ग भी अपना सकते हैं। 

ग्यारहवें भाव में स्थित शनि की तीसरी मित्र दृष्टि प्रथम भाव पर पड़ती है जो जातक के शरीर को हष्ट पुष्ट बनाती है लेकिन इनके शरीर में कुछ कष्ट भी रह सकता है।

सातवीं उच्च दृष्टि से शनि पंचम भाव को देखता जो जातक को बुद्धिमान बनाता है। इन्हें संतान का सुख प्राप्त होता है।

दसवीं दृष्टि से शनि अष्टम भाव में अपनी ही राशि को देखता है जोकि व्यक्ति की आयु में वृद्धि करता है। यह दृष्टि जातक को अनेक प्रकार के खतरे में भी डाल सकती है।

मिथुन लग्न की कुण्डली के बारहवें भाव मे शनि

मिथुन लग्न की कुंडली के बारहवें भाव में शनि जातक को विदेश से धन लाभ करवाता है। ऐसे व्यक्तियों का स्वभाव खर्चीला तो नहीं होता लेकिन इनके पैसे खर्च हो जाते हैं।

शनि की तीसरी शत्रु दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है जिससे व्यक्ति को धन इकट्ठा करने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्तियों को अपने परिवार का सुख कुछ कम ही मिलता है।

शनि की सातवीं शत्रु दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है जिससे व्यक्ति को शत्रुओं से हर हाल में विजय मिलती है भले ही लड़ाई कितनी भी लंबी चले।

दसवीं दृष्टि से शनि नवम भाव को देखकर व्यक्ति को भाग्यशाली बना देता है। ऐसे व्यक्ति धर्म का पालन करते हैं।

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