मेष लग्न में गुरु (बारह भावों में)

मेष लग्न में गुरु नवमें तथा बारहवें भाव के स्वामी होते हैं। इनकी मूल त्रिकोण राशि धनु नौवें भाव में पड़ने के कारण यह मेष लग्न के लिए कारक ग्रह हो जाते हैं तथा व्यक्ति को कई प्रकार के अच्छे परिणाम दिलाते हैं। आइए जानते हैं मेष लग्न में गुरु के 12 भावों में फल।

मेष लग्न के पहले भाव में गुरु का फल

मेष लग्न के पहले भाव यानी लग्न में ही गुरू का बैठना अत्यंत श्रेष्ठ माना जाएगा क्योंकि ये भाग्य भाव के स्वामी होते हुए व्यक्ति के लग्न में बैठ गए। यह स्थिति व्यक्ति को भाग्यवान बनाती है।

प्रथम भाव व्यक्ति के शरीर को भी दर्शाता है। अगर यहां पर गुरु बैठे हैं तो व्यक्ति को शारीरिक तौर पर निरोग बनाएंगे तथा उसे सभी प्रकार के यश, मान और सम्मान की प्राप्ति होगी। लग्न में बैठा गुरु कई बार व्यक्ति को विदेश से भी लाभ कराता है।

यहां पर बैठा गुरु अपनी पांचवी मित्र दृष्टि व्यक्ति के बुद्धि और संतान भाव पर डालने के कारण उसकी बुद्धि को तीव्र तथा सही दिशा में करेगा और उसे संतानवान भी बनाएगा।

इस गुरु के सातवीं दृष्टि व्यक्ति के सप्तम भाव पर पड़ेगी जो गुरु के शत्रु शुक्र का है। यह दृष्टि व्यक्ति के जीवनसाथी के साथ संबंधों को कठोर कर सकती है तथा व्यवसाय में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

नौवीं दृष्टि से गुरु अपनी ही राशि धनु को देखेंगे जिससे व्यक्ति को राज्य से मान सम्मान दिलाएंगे तथा उसे भाग्यवान, यशस्वी और सुखी बनाएंगे। कुल मिलाकर मेष लग्न में गुरु का लग्न में बैठना अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है।

मेष लग्न के दूसरे भाव में गुरु का फल

मेष लग्न के दूसरे भाव में गुरु शत्रु शुक्र की राशि में बैठता है। चूंकि गुरु बारहवें भाव का स्वामी होकर दूसरे भाव में बैठा है इसलिए यह स्तिथि व्यक्ति को विदेश से तथा इन्वेस्टमेंट से लाभ दिलाती है।

ऐसे लोगों के पास खाते में पैसे बचाते हैं क्योंकि इनके खर्च का स्वामी इनके धन में बैठा है इसलिए इनको यह सलाह दी जाती है की उन्हें अपने पैसों को इन्वेस्ट करना चाहिए या फिर उसे अचल संपत्ति के रूप में बदल लेना चाहिए।

गुरु की यह स्तिथि व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि करती है तथा उसे अपने पिता से भी अनेकानेक लाभ होते हैं। ऐसे व्यक्तियों की वाणी में ज्ञान होता है इसलिए अगर ये लोग परामर्श या शिक्षण के कार्य करें तो उत्तम होता है।

यहां बैठे गुरु की पांचवी दृष्टि छठे भाव पर पड़ती है यह दृष्टि व्यक्ति को अपने शत्रु से बड़ी ही चतुराई से निपटने की कला देती है। ऐसे लोग अगर कुंडली में दूसरे बुरे योग ना हों तो निरोग भी होते हैं।

सातवीं दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ने के कारण व्यक्ति के अचानक लाभ होने की संभावनाएं बन जाती हैं साथ ही व्यक्ति को पुरानी चीजों से लाभ होता है। ऐसे लोग लंबी आयु वाले होते हैं।

नौवीं नीच दृष्टि से गुरु दसम स्थान को देखता है जिससे व्यति को कार्य क्षेत्र में मेहनत करने पर सफलता प्राप्त होती है। अगर दशम भाव पर किसी और प्रकार से पीड़ित हो तो व्यक्ति को राज्य से किसी प्रकार की परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

मेष लग्न के तीसरे भाव में गुरु का फल

मेष लग्न के तीसरे भाव में गुरु मित्र बुध की राशि में स्थित होता है। कई ज्योतिषाचार्य का मानना है कि गुरु की यह स्थिति व्यक्ति के पराक्रम में कमी कर देती है। 

मेरा भी कुछ ऐसा ही मानना है लेकिन मैंने अपने अनुभव में देखा है की तीसरे भाव का गुरु अपनी सातवीं दृष्टि से अपने ही घर भाग्य स्थान को देखता है। इस दृष्टि के परिणाम स्वरूप व्यक्ति को जीवन में अनेक प्रकार की चीजें बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाती हैं।

तीसरे भाव का गुरु व्यक्ति को भाग्यवान बनाता है साथ ही उसे भाइयों का सुख भरपूर मात्रा में दिलाता है। यहां पर बैठे गुरु की पांचवी शत्रु दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है जो व्यक्ति को पढ़ी लिखी एवं शिष्ट पत्नी दिलाता है लेकिन यह दृष्टि व्यक्ति के व्यवसाय में कुछ परेशानियां ला सकती है।

सातवीं दृष्टि से गुरु भाग्य स्थान हो देखता है जिसके कारण व्यक्ति को भाग्य से बहुत लाभ प्राप्त होता है साथ ही उसके पिता भी वृद्धि करते हैं। ऐसे व्यक्ति धार्मिक सिद्धांतों वाले होते हैं।

नौंवी शत्रु दृष्टि से गुरु लाभ स्थान को देखता है जिससे व्यक्ति को लाभ कमाने में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है लेकिन अगर वह कठिनाइयों का सामना करने के लिए तैयार है तो उसे धन की प्राप्ति अवश्य होती है।

मेष लग्न के चौथे भाव में गुरु का फल

मेष लग्न के चौथे भाव में गुरु मित्र चंद्रमा की राशि में स्थित होता है। यह गुरु की उच्च राशि भी है। ये लोग भाग्यवान और धर्मात्मा होते हैं। गुरु की यही स्थिति व्यक्ति को मानसिक सुख दिलाती है साथी उसे अपनी माता का भी भरपूर मात्रा में सुख प्राप्त होता है। 

ऐसे व्यक्तियों को भूमि भवन वाहन सभी चीजों का सुख मिलता है। यह लोग अपने धन को भूमि भवन खरीदने में खर्च करते हैं।

यहां पर बैठे गुरु की पांचवी दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है जिससे व्यक्ति की आयु में वृद्धि होती है तथा उसे पुरानी चीजों से भी लाभ हो सकता है। यह दृष्टि व्यक्ति के ससुराल वालों को समृद्धि बनाता है।

सातवीं दृष्टि से गुरु अपनी नीच राशि मकर को देखेंगे जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है साथ ही उसके मन में राज्य को लेकर असंतोष बना रह सकता है।

नवी दृष्टि से गुरु व्यय स्थान यानी बारहवें भाव को देखेंगे जहां उनकी स्वयं की राशि आती है। यह दृष्टि व्यक्ति के खर्च को बढ़ाती है लेकिन उसे बाहरी स्थानों से लाभ भी करवाती है।

मेष लग्न के पांचवे भाव में गुरु का फल

मेष लग्न के पांचवे भाव में गुरु मित्र सूर्य की राशि पर स्थित होते हैं। गुरु की यह स्थिति व्यक्ति को विद्वान बनाती है। ऐसे व्यक्तियों की संतान अच्छे पद पर प्रतिष्ठित होती है। ये अपने निर्णय स्वयं लेने वाले होते हैं।

यहां पर बैठे गुरु की पांचवी दृष्टि भाग्य भाव पर पड़ती है जहां गुरु की ही राशि है। इस दृष्टि के कारण व्यक्ति का भाग्य सदैव उसका साथ देता है और वह अपने बुद्धि क्षमता से अपने भाग्य का निर्माण करता है।

सातवीं दृष्टि से गुरु लाभ स्थान को देखता जहां शत्रु शनि की राशि है। इस दृष्टि के परिणाम स्वरूप व्यक्ति को लाभ कमाने में अड़चनों का सामना करना पड़ सकता है लेकिन व्यक्ति लाभ अवश्य कमाएगा।

नौवीं मित्र दृष्टि से गुरु लग्न को देखता है जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति निरोग, सुंदर रहता है साथ ही उसे गुरु ग्रह के संबंधित कार्यों से लाभ होता है।

मेष लग्न के छठवें भाव में गुरु का फल

मेष लग्न के छठे भाव में गुरु मित्र बुध की राशि में स्थित होने से व्यक्ति के भाग्युन्नति में रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है लेकिन भाग्य उन्नति अवश्य होती है। यह गुरु व्यक्ति की नौकरी के लिए अच्छा होता है। ऐसे व्यक्ति जुझारू होते हैं तथा अपने शत्रुओं को परास्त करने वाले होते हैं।

यहां पर बैठे गुरु की पांचवी नीच दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जिस कारण व्यक्ति को अपने कर्म क्षेत्र में शत्रुओं का सामना करना पड़ सकता है लेकिन जैसा कि मैंने पहले बताया व्यक्ति उनसे जीतने में सफल होता है साथ ही उन से लाभ भी कमाता है।

सातवीं दृष्टि से अपनी राशि को देखने से गुरु व्यक्ति को विदेश से लाभ कराते हैं। नवमी दृष्टि गुरु की परिवार के स्थान पर पड़ती है जिस कारण व्यक्ति का अपने परिवार से मतभेद रह सकता है। यहां पर गुरु के बैठने के कारण व्यक्ति को अन्य व्यक्ति के सहयोग से भाग्य में उन्नति प्राप्त होती है।

मेष लग्न के सप्तम भाव में गुरु का फल

मेष लग्न के सप्तम भाव में शुक्र की राशि आती है जो गुरु का शत्रु है। अगर गुरुदेव यहां पर बैठते हैं तो व्यक्ति को विवाह के बाद व्यवसाय में बढ़ोतरी तथा भाग्य उन्नति होगी। यह गुरु व्यक्ति के जीवनसाथी से मतभेद करा सकते हैं।

पांचवी शत्रु दृष्टि से गुरु लाभ स्थान को देखने के कारण व्यक्ति को व्यवसाय से तथा जीवनसाथी से लाभ हो सकता है। उसे अपने से लाभ कमाने के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

सातवीं दृष्टि से लग्न को देखते हैं जिस कारण व्यक्ति को सुंदर और आकर्षक बनाते हैं। ऐसे व्यक्ति निरोग तथा प्रभावशाली होते हैं। नवमी मित्र दृष्टि से पराक्रम भाव को देखने के कारण गुरु व्यक्ति के पराक्रम और छोटे भाई बहनों की वृद्धि करता है तथा व्यक्ति के छोटे भाई बहनों से संबंध अच्छे रहते हैं।

मेष लग्न के आठवें भाव में गुरु का फल

मेष लग्न के आठवें भाव में गुरु मित्र मंगल की राशि पर स्थित होते हैं जिसके कारण व्यक्ति को पुरानी चीजों से लाभ हो सकता है तथा उसकी आयु लंबी होती है। चूंकि गुरु भाग्य स्थान का स्वामी है और आठवें स्थान पर बैठ गया है इस कारण व्यक्ति को भाग्य उन्नति में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

पांचवी दृष्टि से गुरु अपनी ही राशि बारहवे भाव को देखते हैं जिस कारण व्यक्ति को विदेश से लाभ होता है लेकिन उसका खर्च ज्यादा हो सकता है। सातवीं दृष्टि से गुरु दूसरे स्थान को देखते हैं जिस कारण व्यक्ति को पिता तथा राज्य से धन प्राप्त होता है लेकिन कई बार उसे अपने परिवार जनों से मतभेदों का सामना करना पड़ सकता है।

नवी उच्च दृष्टि से गुरु चतुर्थ भाव को देखते हैं जिस कारण व्यक्ति को भूमि, भवन, वाहन सभी का संपूर्ण मात्रा में सुख मिलता है तथा उसकी माता से भी उसके संबंध अच्छे रहते हैं और लाभ भी होता है।

मेष लग्न के नवे भाव में गुरु का फल

मेष लग्न के नवम भाव में गुरु स्वराशि का हो जाता है जिस कारण व्यक्ति को अत्यंत भाग्यशाली तथा धर्मात्मा बनाता है। ऐसे लोग अपने भाग्य से जीवन में अनेक उपलब्धियां हासिल करते हैं साथ ही इनके पिता से भी इन्हें अनेक प्रकार के सुख मिलते हैं।

पंचम दृष्टि से गुरु लग्न को देखता है जिस कारण व्यक्ति सुंदर आकर्षक और प्रभावशाली होता है साथ ही उसे रोगों से भी मुक्ति मिलती है। सातवीं दृष्टि से गुरु भाई एवं पराक्रम के स्थान को देखते हैं जिस कारण व्यक्ति को छोटे भाई बहनों से पर्याप्त सुख मिलता है तथा वह अत्यंत पराक्रमी भी होता है।

नवम भाव में बैठे गुरु की नवमी दृष्टि पांचवें भाव पर पड़ती है जिस कारण व्यक्ति अच्छी विद्या ग्रहण करने वाला तथा संतान पक्ष में भी विशेष सफलता प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्तियों की बुद्धि तीव्र होती है।

मेष लग्न के दशम भाव में गुरु का फल

मेष लग्न के दसवें भाव में गुरु नीच का हो जाता है जिसके प्रभाव से व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में कठिनाई और काफी परिश्रम के बाद सफलता प्राप्त होती है। उसे राज्य से भी विघ्नों का सामना करना पड़ सकता है।

कई बार ऐसे लोग अत्यंत उदार और दानी होने के कारण अपना ही नुकसान कर बैठते हैं।

पांचवी दृष्टि से गुरु धन भाव को देखता है जिस कारण व्यक्ति अपने कर्म से धन तो कमाता है लेकिन अवश्य ही उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति के कई बार अपने कुटुम्ब से झगड़े या मतभेद होते रहते हैं।

सातवीं उच्च दृष्टि से गुरु चौथे भाव को देखेंगे जिस कारण व्यक्ति को भूमि भवन वाहन तथा माता का संपूर्ण मात्रा में सुख प्राप्त होगा। ऐसे लोग अपने अंतर्मन में खुश रहने वाले होते हैं। यह चीजों की नकारात्मकता को छोड़कर सकारात्मकता पर ज्यादा ध्यान देते हैं।

नवी मित्र दृष्टि से जोरू छठे भाव को देखता है जिस कारण व्यक्ति को अपने शत्रुओं से लाभ होता है साथ ही वह बड़ी ही सरलता से उन्हें परास्त करने में सफल होता है।

मेष लग्न के ग्यारहवें भाव में गुरु का फल

मेष लग्न के ग्यारहवें भाव में गुरु अपने शत्रु शनि की राशि पर स्थित होता है। इसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति अपने भाग्य से तथा गुरु से संबंधित कार्य करके धन कमाता है लेकिन अवश्य ही उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

पांचवी दृष्टि से गुरु पराक्रम भाव को देखकर व्यक्ति के पराक्रम में वृद्धि करते हैं साथ ही उसे अपने छोटे भाई बहनों का पर्याप्त मात्रा में सुख प्राप्त होता है। सातवीं मित्र दृष्टि से गुरु पांचवे भाव को देखने के कारण व्यक्ति के निर्णय लेने की शक्ति को बेहतरीन कर देते हैं साथ ही ऐसे लोगों के विद्या अध्ययन में रुकावटें नहीं आती।

नवी दृष्टि से सातवें भाव को देखने के कारण व्यक्ति को पढ़ी लिखी एवं सुशील पत्नी प्राप्त होती है लेकिन कई बार उन दोनों में मतभेद होने की संभावनाएं बनी रहती हैं। ऐसे व्यक्ति को व्यवसाय में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। 

मेष लग्न के बारहवें भाव में गुरु का फल

मेष लग्न के बारहवें भाव में गुरु अपनी ही राशि पर स्थित होता है। ऐसे व्यक्तियों को विदेश से लाभ होता है साथ ही अगर वह विदेश से जुड़ कर कार्य करें तो उनका भाग्य भी भरपूर मात्रा में साथ देता है।

पांचवी दृष्टि से गुरु चौथे भाव को देखता है जिस कारण व्यक्ति को माता मकान वाहन का संपूर्ण मात्रा में सुख प्राप्त होता है। सातवीं दृष्टि से गुरु छठे भाव को देखता है जिस कारण व्यक्ति अपने शत्रुओं को बड़ी ही सरलता से परास्त कर देता है।

बारहवें भाव में बैठे गुरु की नवी दृष्टि आठवें भाव पर पड़ती है जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति को पुरानी चीजों से लाभ होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं साथ ही उसकी आयु भी लंबी होती है। चूंकि भाग्य भाव का स्वामी बारहवें स्थान में स्थित है इसलिए व्यक्ति को परिश्रम से कभी भी मुंह नहीं फेरना चाहिए।