कुंडली में उच्च का शनि | (क्या प्रभाव देता है)

हमारे मन में शनि ग्रह को लेकर अनेक भ्रांतियां रहती हैं। कुछ लोग इनसे बहुत ज्यादा डरते हैं और कुछ लोग इन पर बहुत ज्यादा विश्वास करते हैं।

सामान्य तौर पर शनि ग्रह से उस व्यक्ति को अवश्य ही डरना चाहिए जो अपने कार्य को सही से नहीं कर रहा है तथा गरीब और असहाय लोगों के साथ गलत कर रहा है।

आज मैं आपको इस आर्टिकल के माध्यम से कुंडली में उच्च के शनि के प्रभावों के बारे में बात करने वाला हूं साथ ही साथ में आपको यह भी बताऊंगा की शनि ग्रह किस राशि में उच्च के होते हैं और क्यों इसलिए इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें।

शनि ग्रह किस राशि में उच्च का होता है?

शनि ग्रह तुला राशि में उच्च का होता है जो काल पुरुष की कुंडली में सप्तम भाव को दर्शाती है। अगर इस राशि में शनि 20 अंश का हो तो इसे सबसे मजबूत माना जाएगा और जैसे-जैसे इसके अंश कम होंगे उसी अनुसार यह कम प्रभावी होगा।

20 अंश के बाद शनि को उच्च नहीं माना जाता। हां, वह अपनी उच्च राशि में है लेकिन उतना प्रबल नहीं है जितना उसे होना चाहिए था। अब जानते हैं कि शनि तुला राशि में उच्च का क्यों होता है?

तुला राशि में शनि के उच्च होने के अनेक कारण हैं। तुला राशि काल पुरुष की कुंडली में सातवें भाव पर पड़ती है जहां शनि को दिगबल प्राप्त होता है। तुला राशि संतुलन, व्यापार तथा वास्तविकता को दर्शाती है और शनि भी संतुलन, वास्तविकता और व्यापार को दर्शाता है।

शनि को न्यायाधीश भी माना जाता है। अगर आपने कभी अदालत देखी हो तो उसमें एक महिला जिसके आंख में काली पट्टी बधी होती है उनके हाथ में एक तराजू रहता है वही तराजू तुला का वास्तविक चिन्ह भी है। इस बात से हमें शनि ग्रह में और तुला राशि में समानताओं का पता चलता है।

कुंडली में उच्च का शनि क्या प्रभाव देता है?

कुंडली में उच्च का शनि व्यक्ति को वास्तविकता को पसंद करने वाला बना देता है। ऐसे व्यक्ति सच को महत्व देने वाले तथा तर्कशील होते हैं। यह अक्सर ही कोई भी कदम उठाने से पहले उसका अच्छे से आकलन करते हैं उसके पश्चात ही कार्य प्रारंभ करते हैं।

ऐसे व्यक्तियों के भीतर दूरदर्शिता पाई जाती है। कोई भी कार्य शुरू करने से पहले यह उसके परिणाम के बारे में अच्छे से विचार विमर्श करते हैं। यह अपने अनुभव को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं और आगे बढ़ते रहते हैं। इनसे बीते हुए कल मैं जो भी गलतियां हुई उनसे सबक लेते हैं और आगे उनको दोहराने का कभी प्रयत्न नहीं करते।

कुंडली में उच्च का शनि व्यक्ति को अनुशासित बनाता है। इन्हें किसी भी कार्य को करने में अनुशासित रहना पसंद होता है। इन्हें कानून का पालन करना बहुत अच्छे से आता है इसलिए ऐसे लोग सिविल सेवा अधिकारी या और भी बड़े पदों को प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि यह ऐसे पद है जहां इन्हें बने बनाए नियमों का लोगों से पालन कराना है।

अगर किसी का शनि तीसरे, सातवें, दसवें या ग्यारहवें भाव में उच्च का हो तो ऐसे व्यक्तियों का रुझान व्यवसाय की और अधिक होता है। वे अक्सर व्यवसाय करने को प्राथमिकता देते हैं। शनि धन का कारक होने के कारण धन भी दिलाता है लेकिन वह दीर्घकालिक ग्रह है इसलिए व्यक्ति को सब कुछ एक निश्चित उम्र के बाद देना शुरू करता है।

शनि ग्रह विलंब का कारक है। अगर शनि कुंडली में उच्च का हो तो व्यक्ति को चीजें विलंब के साथ यानी धीरे-धीरे प्राप्त होती हैं। उसे मिलेगा सब कुछ लेकिन धीरे-धीरे प्राप्त होगा।

शनि कर्णप्रिय ग्रह है अर्थात शनि कर्म करने पर ही फल देते हैं। यहां पर कर्मों का मतलब सिर्फ इसी जन्म का नहीं बल्कि पिछले जन्म के कर्मों को भी मान्यता दी जाती है। अगर आपके पिछले जन्म के कर्म अच्छे रहे होंगे तो उच्च का शनि आपको उसका प्रभाव अवश्य ही देगा।

शनि की उच्च राशि कौन सी है?

शनि की उच्च राशि तुला है। जब कभी भी शनि तुला राशि यानी कुंडली में जहां सात नंबर लिखा हो वहां पर बैठे हो तो उन्हें उच्च का कहा जाएगा।

शनि किसका कारक है?

शनि स्नायुओं के रोग, दीर्घकाल, नौकरी, श्रम, टांगे, धन लाभ, कर्म आदि का कारक होता है।

शनि के प्रभाव से क्या होता है?

शनि एक विच्छेदात्क ग्रह है जिस कारण जहां भी इसका प्रभाव पड़ता है वहां से व्यक्ति को अलग होना पड़ सकता है। अगर वहां पर अन्य किसी पाप ग्रह का भी प्रभाव पड़ जाए तो निश्चित तौर पर व्यक्ति को उस चीज से अलग होना पड़ता है।

शनि की मित्र राशि कौन सी है?

शनि की मित्र राशियां हैं मिथुन, कन्या और वृषभ।

मित्र राशि क्या है?

सामान्य तौर पर जैसे हम अपने किसी मित्र के घर में जाकर अच्छा महसूस करते हैं उसी प्रकार ग्रहों की भी मित्र राशियां होती हैं जिसमें जब वह बैठते हैं तो उन्हें अच्छा महसूस होता है।