वीरवार की व्रत कथा आरती | बृहस्पतिवार व्रत कथा आरती

वीरवार को बृहस्पतिवार या गुरुवार कहते हैं. इस दिन भगवान बृहस्पतेश्वर जी की पूजा और व्रत की जाती है. भगवान बृहस्पति को ज्ञान और शिक्षा का कारक माना जाता है.

इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति सिर्फ एक बार भोजन करते हैं, पीले वस्त्र पहनते हैं. भगवान बृहस्पति को पीले फूल चढ़ाते हैं और उसके बाद बृहस्पतिवार व्रत कथा और आरती करते हैं.

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बृहस्पतिवार व्रत कथा (संपूर्ण कहानी)

आज मैं आपको इस आर्टिकल में गुरुवार के दिन वीरवार व्रत कथा के बाद गए जाने वाली आरती बताऊंगा. इसलिए इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें.

वीरवार की व्रत कथा आरती | बृहस्पतिवार की व्रत कथा आरती

बृहस्पति भगवान अपने भक्तों को धन, विद्या और पुत्र प्रदान करते हैं. ऐसा शास्त्रों में प्रमाण है की किसी भी भक्त के शादी विवाह में आ रही अड़चनों को भगवान बृहस्पति दूर करते हैं. इसलिए हमें वृहस्पति व्रत कथा और आरती अवश्य करना चाहिए.

आपको वीरवार के दिन कथा करने के बाद पहले बृहस्पति देव की आरती करनी चाहिए और उसके बाद जगदीश जी की आरती करनी चाहिए.

आरती बृहस्पति देव की

जय बृहस्पति देवा, ॐ जय बृहस्पति देवा।
छिन छिन भोग लगाऊँ कदली फल मेवा ।। ॐ।।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगत पिता जगदीश्वर तुम सबके स्वामी।। ॐ।।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भरता।। ॐ।।
तम, मन, धन अर्पण कर जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकार द्वार खड़े।। ॐ।।
दीन दयाल दयानिधि, भक्तान हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।। ॐ।।
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारी।
विषय विकार मिटाओ संतन सुखकारी।। ॐ।।
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।
जेष्टानंद आनन्दन्द सो निश्चय पावे।। ॐ।।

आरती जगदीश जी की

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे।।
जो ध्यावे फल पावे, दुख विनसे मन का। स्वामी दुख विनसे मन का।
सुख संपत्ति घर आवे कष्ट मिटे तन का।। ॐ जय जगदीश हरे।।
मात-पिता तुम मेरे शरण गहूं मैं किसकी। स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी।। ॐ जय जगदीश हरे।।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी। स्वामी तुम अंतर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी।। ओम जय जगदीश हरे।।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन कर्ता। स्वामी तुम पालन कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता।। ओम जय जगदीश हरे।।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति।। ओम जय जगदीश हरे।।
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे। स्वामी तुम रक्षक मेरे।
करुणा हस्त उठाओ, द्वार पड़ा तेरे।। ॐ जय जगदीश हरे।।
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। स्वामी पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा।। ॐ जय जगदीश हरे।।
श्री जगदीश जी की आरती, जो कोई नर गावे। स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपत्ति पावे।। ॐ जय जगदीश हरे।।